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|रचनाकार=केशवदास
}}
[[Category:पद]]{{KKCatSavaiya}}<poeMpoem>'केशव सूधो विलोचन सूधी, विलोकनि कों अवलोकै सदाई।
सूधिये बात सुनै समुझे, कहि आवत सूधियै बात सुहाई॥
 
सूधी सी हाँसी सुधाकर, मुख सोधि लई वसुधा की सुधाई।
सूधे सुभाइ सबै सजनी, बस कैसे किए अति टेढे कन्हाई॥
  </poeMpoem>
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