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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आसावां रै अडाण नैं
दीवळां खायगी
आभै में उडणौं चावै ही
जमीं माथै आयगी।
म्हूं देखती थारी आंख्यां में
सुपना घणा-मोकळा
जणां थूं बीरै सारू
जोतकी नैं हाथ देखाळती
थारी आंख्यां चिलक बापरती
सुपना तो म्हारै सारू बी हावैला
थारी आंख्यां में
म्हारै पांती रा सुपना पण
कुण चोर लेयग्यौ
म्हनैं टाबरी नै कांई ठाह
थानैं तो पण ठाह होवैलो
थे तो मा हो?
</poem>
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<poem>
आसावां रै अडाण नैं
दीवळां खायगी
आभै में उडणौं चावै ही
जमीं माथै आयगी।
म्हूं देखती थारी आंख्यां में
सुपना घणा-मोकळा
जणां थूं बीरै सारू
जोतकी नैं हाथ देखाळती
थारी आंख्यां चिलक बापरती
सुपना तो म्हारै सारू बी हावैला
थारी आंख्यां में
म्हारै पांती रा सुपना पण
कुण चोर लेयग्यौ
म्हनैं टाबरी नै कांई ठाह
थानैं तो पण ठाह होवैलो
थे तो मा हो?
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