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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
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<poem>
अकूरड़ी रै
कूटळै मांय सूं
नैनां-नैना टाबरियां नैं
खावण री जिन्सा चुगतां
अर बिना दवाई लावारिस
सांसा छोडतां लोगां नैं
देखतां
घणौं गुमेज होवै
अर म्हैं नवाऊं माथौ
म्हारै लोक कल्याणकारी राज नै।
</poem>
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