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Kavita Kosh से
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तेरे हाथों से छूटी तो पल भर में मिस्मार हुई
भोली-भाली सी गुड़िया, इक धक्के , लम्हे में बेकार हुई
ज़ख्मों पर मरहम रखने को, उसने हाथ बढाया था
मेरे जीवन की पीड़ा ही, दोधारी तलवार हुई
जो देती थी साया मुझको, दूर वही दीवार हुई