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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
चाल मुसाफिर मारग खोजां
सोच मती तू रूकणै की
आगै बध जा पीछे मत मुड़
बात मती कर थमणै की।
हिरदै में विष्वास थरपलै
कुछ ना कुछ तो पाणौ है
जग में ईष्वर भेज्या है तो
कुछ न कुछ कर जाणौ है
मन में इच्छावां पैदा कर
सोच बहुत कुछ करणै की।
चाल मुसाफिर मारग खोजां
रस्तै बीच रूकावट आसी
बाधा आसी पग पग में
बिन कुछ करियां गया जगत सूं
तो क्यूं आया इण जग में
जद तक थारी ठौड न आवै
सोच मती तू थमणैं की।
चाल मुसाफिर मारग खोजां
तेल पून सूं लड़ै है दिवलौ
फेर भी बो हारै कोनी
जकै काळजै हिम्मत होवै
बो अबखायाँ धारै कोनी
तू दिवलौ बण मिटा अंधेरौ
सोच मती तू बुझणै की।
आगै बध जा पिछे मत मुड़
बात मती कर थमणै की।
</poem>