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|रचनाकार=वासु आचार्य
|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
}}
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<poem>
रात रात भर
अंधारी रातां रै
गैरै सरणाटे सागै
खदबदीजती रै
मांय री मांय
भर्यै ताळ मांय
सुकड्योड़ी
अमूज्यौड़ी-बा काई
ताकती रै-पूरौ आभो
खीरा दांई लपलावता तारा
काढ़ता-रातीराती आंख्यां
फौड़ती रै माथो
सूनै घाटा
ताळ री भीता
आखी आखी रातां
अर सुबकती रै
आपरै चन्द्रमा री उडीक मांय
म्हैं सोचूं
म्है सूं तो काई भली
जिकै रै हियै जियै
की तो थ्यावस है
चांदण पखरी
चन्द्रमा सूं मिलणै री
अर अठीनै म्हैं
ताकतो रैवूं-गूंगौ आभो
अर पीवतौ रैऊ
हर पल हर छिन्न
दिन अर रात रो अंधारो
गेरौ सरणाटो
</poem>
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|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
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रात रात भर
अंधारी रातां रै
गैरै सरणाटे सागै
खदबदीजती रै
मांय री मांय
भर्यै ताळ मांय
सुकड्योड़ी
अमूज्यौड़ी-बा काई
ताकती रै-पूरौ आभो
खीरा दांई लपलावता तारा
काढ़ता-रातीराती आंख्यां
फौड़ती रै माथो
सूनै घाटा
ताळ री भीता
आखी आखी रातां
अर सुबकती रै
आपरै चन्द्रमा री उडीक मांय
म्हैं सोचूं
म्है सूं तो काई भली
जिकै रै हियै जियै
की तो थ्यावस है
चांदण पखरी
चन्द्रमा सूं मिलणै री
अर अठीनै म्हैं
ताकतो रैवूं-गूंगौ आभो
अर पीवतौ रैऊ
हर पल हर छिन्न
दिन अर रात रो अंधारो
गेरौ सरणाटो
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