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<poem>
घर में सही पहचान बा
तबहीं सभत्तर मान बा

कह के नकारल बात के
कुछ आदमी के बान बा

महँगी बढ़ी सहते चलीं
सरकार के फरमान बा

कर-बोझ बढ़ते जा रहल
दब के मरत इन्सान बा

अपना खुदे नइखे समझ
समझावले आसान बा

जतना बटोरे लूट के
धनवान ऊ भगवान बा

असली छिपल जब चेहरा
मुमकिन कहाँ पहचान बा
</poem>
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