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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
घर में सही पहचान बा
तबहीं सभत्तर मान बा
कह के नकारल बात के
कुछ आदमी के बान बा
महँगी बढ़ी सहते चलीं
सरकार के फरमान बा
कर-बोझ बढ़ते जा रहल
दब के मरत इन्सान बा
अपना खुदे नइखे समझ
समझावले आसान बा
जतना बटोरे लूट के
धनवान ऊ भगवान बा
असली छिपल जब चेहरा
मुमकिन कहाँ पहचान बा
</poem>
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घर में सही पहचान बा
तबहीं सभत्तर मान बा
कह के नकारल बात के
कुछ आदमी के बान बा
महँगी बढ़ी सहते चलीं
सरकार के फरमान बा
कर-बोझ बढ़ते जा रहल
दब के मरत इन्सान बा
अपना खुदे नइखे समझ
समझावले आसान बा
जतना बटोरे लूट के
धनवान ऊ भगवान बा
असली छिपल जब चेहरा
मुमकिन कहाँ पहचान बा
</poem>