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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
लोग समय के गुलाम बाटे
केहू कसले लगाम बाटे
अझुराइल बा सभे इहाँ के
ऊपर मन से सलाम बाटे
खाते-पियते इहाँ-उहाँ में
सबके जिनगी तमाम बाटे
भीतर करिया जमा भइल बा
बाहर धप्-धप् त चाम बाटे
रावन मन में बसल तबहुँओ
मुँह से सुमिरत ई राम बाटे
</poem>
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लोग समय के गुलाम बाटे
केहू कसले लगाम बाटे
अझुराइल बा सभे इहाँ के
ऊपर मन से सलाम बाटे
खाते-पियते इहाँ-उहाँ में
सबके जिनगी तमाम बाटे
भीतर करिया जमा भइल बा
बाहर धप्-धप् त चाम बाटे
रावन मन में बसल तबहुँओ
मुँह से सुमिरत ई राम बाटे
</poem>