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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
दरदे अबले उपहार मिलल
अपना मतलब के यार मिलल
बगिया-बगिया कम ना छनलीं
बदले कुसुमन के, खार मिलल
आटा गिल कइलीं घर ही के
कुछ यश, कुछ बा आभार मिलल
पग-पग पर बाधा बान्ह बनल
राहे चलते बटमार मिलल
कइसे थम पाई लूट-झपट
भक्षक जब पहरादार मिलल
हम मंचन कइलीं तन-मन से
जइसन हमरा किरदार मिलल
दाता धरती पर लउके ना
जे लउकल से लाचार मिलल
</poem>
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}}
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दरदे अबले उपहार मिलल
अपना मतलब के यार मिलल
बगिया-बगिया कम ना छनलीं
बदले कुसुमन के, खार मिलल
आटा गिल कइलीं घर ही के
कुछ यश, कुछ बा आभार मिलल
पग-पग पर बाधा बान्ह बनल
राहे चलते बटमार मिलल
कइसे थम पाई लूट-झपट
भक्षक जब पहरादार मिलल
हम मंचन कइलीं तन-मन से
जइसन हमरा किरदार मिलल
दाता धरती पर लउके ना
जे लउकल से लाचार मिलल
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