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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
नेक आचरन मनुष्य के दफन भइल
साधु-संत तक के लक्ष्य आज धन भइल
राम के कथा सुनत कटल ई जिन्दगी
दानवी विचार से अलग ना मन भइल
भोग-रोग से तमाम लोग त्रस्त बा
कर्मयोग-साधना-विपन्न तन भइल
देखते उमिर सिरा गइल गवें-गवें
काम क्रोध लोभ के कहाँ शमन भइल
लोकहित में त्याग के गइल शरीर जे
गीत यश के गावते गगन मगन
</poem>
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नेक आचरन मनुष्य के दफन भइल
साधु-संत तक के लक्ष्य आज धन भइल
राम के कथा सुनत कटल ई जिन्दगी
दानवी विचार से अलग ना मन भइल
भोग-रोग से तमाम लोग त्रस्त बा
कर्मयोग-साधना-विपन्न तन भइल
देखते उमिर सिरा गइल गवें-गवें
काम क्रोध लोभ के कहाँ शमन भइल
लोकहित में त्याग के गइल शरीर जे
गीत यश के गावते गगन मगन
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