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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
गहलीं कलम लिखते लिखत मर मन गइल
कविता-गजल-गीतन के रस मे सन गइल
बइठल सभे बा घर बना अलगे-अलग
केहू कइल घुसपैठ तब-तब ठन गइल
जिनगी खपा दीहल करत श्रम-साधना
अमरत्व पा इतिहास, पुरूखा बन गइल
कुछ लोग सउँसे उम्र पार लगा रहल
आइल, बुढ़ौती तबहूँ ना बचपन गइल
माँ भारती के हाथ बहुत बा बड़ा
जाई अकारथ ना ‘पराग’ सरन गइल
</poem>
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गहलीं कलम लिखते लिखत मर मन गइल
कविता-गजल-गीतन के रस मे सन गइल
बइठल सभे बा घर बना अलगे-अलग
केहू कइल घुसपैठ तब-तब ठन गइल
जिनगी खपा दीहल करत श्रम-साधना
अमरत्व पा इतिहास, पुरूखा बन गइल
कुछ लोग सउँसे उम्र पार लगा रहल
आइल, बुढ़ौती तबहूँ ना बचपन गइल
माँ भारती के हाथ बहुत बा बड़ा
जाई अकारथ ना ‘पराग’ सरन गइल
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