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<poem>
नागिन जइसन डँसत अन्हरिया, कबहीं ना भिनसार भइल
कटलो से ना कटत उमरिया, छन-छन जिनगी भार भइल

कबहूँ पेट भरल ना आपन, करत मजूरी-बेकारी
फाटल कपड़ा पहिरत अबले, सउँसे देह उघार भइल

भाखन सुनलीं लमहर-लमहर, रासन भइल नदारत बा
टुकड़ा-टुकड़ा रोटी खातिर, लड़िकन सन में मार भइल

आन्ही में छप्पर उधियाइल, खर्र-पतहर ना मिलल कहीं
घर-आँगन में लागल पनियाँ, बरखा मुसलाधार भइल

जीतल चोर चुहाड़े अबले, बम से, चाहे लाठी से
मेहनत आ ईमान-धरम के डेगे-डेगे हार भइल

अपना हक खातिर भइया हथवा पइयाँ मजबूत करऽ
हक खातिर लड़के कुछ पइबऽ, जुग के आज पुकार भइल
</poem>
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