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{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हैं अंग अंग तेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
पढ़ता हूँ मुँह अँधेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
अलफ़ाज़ तेरा लब छू अश’आर बन रहे,
लिख दे बदन पे मेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
तुझपे बस एक मिसरा कह दूँ इसीलिए,
मन सुब्ह-ओ-शाम फेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
जुल्फ़ें समझ के नागिन लेकर चले गये,
अब गा रहे सपेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
देखा है तुझको जब से तब से वो मौलवी
जपता है नित सवेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
</poem>
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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
हैं अंग अंग तेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
पढ़ता हूँ मुँह अँधेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
अलफ़ाज़ तेरा लब छू अश’आर बन रहे,
लिख दे बदन पे मेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
तुझपे बस एक मिसरा कह दूँ इसीलिए,
मन सुब्ह-ओ-शाम फेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
जुल्फ़ें समझ के नागिन लेकर चले गये,
अब गा रहे सपेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
देखा है तुझको जब से तब से वो मौलवी
जपता है नित सवेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल।
</poem>