भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुर्दे जाग रहे हैं कब्रों और मसानों में।
कैसे भूख मिटेगी हलचल है शैतानों में।

धीरे धीरे समझ गए आखिर सारे मुर्गे,
दोनों में है जहर हरे केसरिया दानों में।

सब चिड़ियों ने मिलजुल कर कुछ ऐसा जाल बुना,
आखेटक आकर फँसते अब रोज मचानों में।

कमल, साइकिल, हाथी, हसिया, पंजा सब हैं एक,
मिलजुल कर ये ले जायेंगे देश खदानों में।

घूम रहे आतंकी महानगर की सड़कों पर,
खोज रहा कानून झुग्गियों और मकानों में।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits