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{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आग में इसको अभी न डालो मिट्टी गीली है।
पहले थोड़ी धूप दिखा लो मिट्टी गीली है।
व्यर्थ न जाने देना इसके भीतर का पानी,
चुक्कड़ गढ़ लो मूर्ति बना लो मिट्टी गीली है।
पानी सूखेगा तो ये पत्थर हो जायेगी,
बीज प्रेम का जल्दी डालो मिट्टी गीली है।
ज़्यादा अगर मिला तो ये कीचड़ हो जायेगी,
और न पानी इसमें डालो मिट्टी गीली है।
बेमिसाल कोमलता इसकी लाजवाब ख़ुशबू,
तन से मन से इसे लगा लो मिट्टी गीली है।
</poem>
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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
आग में इसको अभी न डालो मिट्टी गीली है।
पहले थोड़ी धूप दिखा लो मिट्टी गीली है।
व्यर्थ न जाने देना इसके भीतर का पानी,
चुक्कड़ गढ़ लो मूर्ति बना लो मिट्टी गीली है।
पानी सूखेगा तो ये पत्थर हो जायेगी,
बीज प्रेम का जल्दी डालो मिट्टी गीली है।
ज़्यादा अगर मिला तो ये कीचड़ हो जायेगी,
और न पानी इसमें डालो मिट्टी गीली है।
बेमिसाल कोमलता इसकी लाजवाब ख़ुशबू,
तन से मन से इसे लगा लो मिट्टी गीली है।
</poem>