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|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
न कर इश्क इनसे दगा देंगे तारे।
अगर पास आए जला देंगे तारे।

अँधेरे में ही टिमटिमाते हैं ये सब,
उजाले में खुद को छिपा देंगे तारे।

बड़ी दूर हैं इनसे आशा न कर कुछ,
हैं खुद दिलजले तुझको क्या देंगे तारे।

हैं कबसे हैं कितने न जाने ये कोई,
न कर इनकी गिनती पका देंगे तारे।

मरेंगे तो दिक्काल में छेद होगा,
जिसे भी छुएँगें मिटा देंगे तारे।
</poem>
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