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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
आज नयनों में आग पलने दो।
न बुझाओ चराग, जलने दो।

आग बुझती न सूर्य के दिल की,
उम्र दिन एक से हैं ढलने दो।

नींद की बर्फ लहू में पैठी,
रात की धूप में पिघलने दो।

थक गई है ये अकेले चलकर,
आज साँसों पे साँस मलने दो।

नीर सा मैं हूँ शर्करा सी तुम,
थोड़ी जो है खटास चलने दो।
</poem>
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