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{{KKRachna
|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
}}
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<poem>
लहरि ने आबय लग मे जकरा
एहेन नदीक किनारा छी।
नजरि उठा केओ देखि सकय ने
सांझक एकसर तारा छी।
विरह आगि मे जरि रहलि छी
एहन एकटा फूल हम
काज ने ककरो आबि सकैछी
बाटक एहेन धूल हम
प्यास मिझा ने सकैछी ककरो
सूखल सोतिक धारा छी।
नजरि उठा केओ देखि सकय ने
सांझक एकसर तारा छी।
हमरे लेल ईं राति अन्हरिया
गुज-गुज लागय दिन मे
आगाँ केर सभ बाट बन थिक
जिनगी भेंटल रीन मे
मृगतृष्णा मे सींक पर टांगल
छुतहर घीअक टारा छी।
नजरि उठा केओ देखि सकय ने
सांझक एकसर तारा छी।।
</poem>
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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
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लहरि ने आबय लग मे जकरा
एहेन नदीक किनारा छी।
नजरि उठा केओ देखि सकय ने
सांझक एकसर तारा छी।
विरह आगि मे जरि रहलि छी
एहन एकटा फूल हम
काज ने ककरो आबि सकैछी
बाटक एहेन धूल हम
प्यास मिझा ने सकैछी ककरो
सूखल सोतिक धारा छी।
नजरि उठा केओ देखि सकय ने
सांझक एकसर तारा छी।
हमरे लेल ईं राति अन्हरिया
गुज-गुज लागय दिन मे
आगाँ केर सभ बाट बन थिक
जिनगी भेंटल रीन मे
मृगतृष्णा मे सींक पर टांगल
छुतहर घीअक टारा छी।
नजरि उठा केओ देखि सकय ने
सांझक एकसर तारा छी।।
</poem>