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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
}}
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<poem>
हमरा चाही ने शरद्क इजोरिया
चान तोरा सँ झरकी बरैये।
सोर पारैये सांझ कारी-कारी
बाट ककरो किऐ हम निहारी ?
सुधि आबय ने किये कनेको
मोन जानी ने किए लगैये।
राति पसरल चतुर्दिक अन्हरिया
नीन्न भागल उगल तीन डोरिया
नीक लागैये एकसरि हमरा
मोन रहि-रहि कऽ की-की करैये।
आब गुमसुम रहैये कंगना
चान उतरब ने कहियो अंगना
नोर आंखिक आंखिए रहैये
बिन बजौने किऐ क्यो अबैयै।
</poem>
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हमरा चाही ने शरद्क इजोरिया
चान तोरा सँ झरकी बरैये।
सोर पारैये सांझ कारी-कारी
बाट ककरो किऐ हम निहारी ?
सुधि आबय ने किये कनेको
मोन जानी ने किए लगैये।
राति पसरल चतुर्दिक अन्हरिया
नीन्न भागल उगल तीन डोरिया
नीक लागैये एकसरि हमरा
मोन रहि-रहि कऽ की-की करैये।
आब गुमसुम रहैये कंगना
चान उतरब ने कहियो अंगना
नोर आंखिक आंखिए रहैये
बिन बजौने किऐ क्यो अबैयै।
</poem>