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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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<poem>
लेधे घाटौ खाय’र
खेती करै किसान
देख’र खुस होवां आपां
कै किŸाी जरणांळौ है
पण कण देख्यौ है-
मांय सूं
बो कित्तौ टूट्यो है
हार्यौ है।
</poem>
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लेधे घाटौ खाय’र
खेती करै किसान
देख’र खुस होवां आपां
कै किŸाी जरणांळौ है
पण कण देख्यौ है-
मांय सूं
बो कित्तौ टूट्यो है
हार्यौ है।
</poem>