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<poem>
अेक ई कोठड़ी में
रैवै बै पांच-सात भेळा

आखै दिन कमावै
आथण-दिनगै
बणावै रोट अर खावै
जमीन माथै ई सोय ज्यावै

साल-साल तांई
नीं ल्यै देस जावण रो नांव
लारै लुगाई-टाबर सो कीं है
पाण कियां जावै देस ?

दस रिपिया सैकड़ो
लियोड़ै उधार रो
जुगाड़ सोरै सांसां
थोड़ो ई बणै ?
</poem>
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