भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatAwadhiRachna}}
<poem>
'''भावार्थ ''' - पाँवकी पीड़ान जाने कालकी भयानकता है, पेट की पीड़ाकर्मोंकी कठिनता है, बाहु की पीडा और मुखकी पापका प्रभाव है अथवा स्वाभाविक वातकी उन्मत्तता है। रात-दिन बुरी तरहकी पीड़ा-सारा शरीर पीड़ामय होकर जीर्ण-शीर्ण हो गया है। देवता, प्रेत, पितर, कर्मरही हैं, काल जो सही नहीं जाती और दुष्टग्रह -सब साथ ही दौरा करके मुझपर तोपोंकी बाड़-सी दे रहै हैं। बलि जाता हूँ, मैं तो लड़कपनसे उसी बाँहको पकड़े हुए है जिसको पवनकुमारने पकड़ा था। तुलसीरूपी वृक्ष आपका ही आपके हाथ बिना मोल बिका लगाया हुआ हूँ और अपने कपाल में रामनाम का आधार लिख लिया है। हाय राजा यह तीनों तापोंकी ज्वालासे झुलसकर मुरझा गया है इसकी ओर निहारकर कृपारूपी जलसे सींचिये। हे दयानिधान रामचन्द्रजी ! कहीं ऐसी दसा भी हुई है कि अगस्त्या मुनिका सेवक गायके खुरमें डूब गया हो॥ 38॥ आप भूतोंकी, अपनी और बिरानेकी सबकी रीति जानते है॥37॥
'''भावार्थ ''' - बाहुकी पीड़ारूप नीच सुबाहु और देहकी अशक्ति-रूप मारीच राक्षस पाँवकी पीड़ा, पेट की पीड़ा, बाहु की पीडा और ताड़कारूपिणी मुखकी पीड़ा एवं अन्यान्य बुरे रोगरूप राक्षसोंसे मिले हुए हैं। मैं रामनामका जपरूपी यज्ञ प्रेमके साथ करना चाहता हूँ, पर कालदूत के समान ये भूत क्या मेरे काबूके हैं ? (कदापि नहीं) संसारमें जिनकी बड़ी नमावरी -सारा शरीर पीड़ामय होकर जीर्ण-शीर्ण हो रही हैगया है। देवता, वे (रा प्रेत, पितर, कर्म, काल और म) दोनों अक्षर स्मरण करनेपर मेरी सहायता करेगें। हे तुलसी ! तू ताड़काका वध करनेवाले भारी योद्धाका स्मरण करदुष्टग्रह -सब साथ ही दौरा करके मुझपर तोपोंकी बाड़-सी दे रहै हैं। बलि जाता हूँ, वह इन्हें मैं तो लड़कपनसे ही आपके हाथ बिना मोल बिका हुआ हूँ और अपने बाणका निशाना बनाकर बड़के फलके समान भेदन (स्थानच्युत) कर देंगे॥ 39॥ कपाल में रामनाम का आधार लिख लिया है। हाय राजा रामचन्द्रजी ! कहीं ऐसी दसा भी हुई है कि अगस्त्या मुनिका सेवक गायके खुरमें डूब गया हो॥38॥
'''भावार्थ ''' - बाहुकी पीड़ारूप नीच सुबाहु और देहकी अशक्ति-रूप मारीच राक्षस और ताड़कारूपिणी मुखकी पीड़ा एवं अन्यान्य बुरे रोगरूप राक्षसोंसे मिले हुए हैं। मैं रामनामका जपरूपी यज्ञ प्रेमके साथ करना चाहता हूँ, पर कालदूत के समान ये भूत क्या मेरे काबूके हैं ? (कदापि नहीं) संसारमें जिनकी बड़ी नमावरी हो रही है, वे (रा और म) दोनों अक्षर स्मरण करनेपर मेरी सहायता करेगें। हे तुलसी ! तू ताड़काका वध करनेवाले भारी योद्धाका स्मरण कर, वह इन्हें अपने बाणका निशाना बनाकर बड़के फलके समान भेदन (स्थानच्युत) कर देंगे॥39॥ '''बालपने सूघे मन राम सनमुख भयो,''''''रामनाम लेत भाँति खात टूकटाक हौं।''''''पर्यो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय,''''''मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं॥''' '''खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो,''''''अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।''''''तुलसी गोसाइँ भयो भोंड़े दिन भूलि गयो,''''''ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥40॥''' '''भावार्थ''' - मैं बाल्यावस्थासे ही सीधे मनसे श्रीरामचन्द्रजीके सम्मुख हुआ, मुँहसे रामनाम लेता टुकड़ा-टुकड़ी माँगकर खाता था (फिर युवावस्थामें) लोकरीतिमें पड़कर अज्ञानवश राजा रामचन्द्रजीके चरणोंकी पवित्र प्रीतिको चटपट(संसारमें) कूदकर तोड़ बैठा। उस समय खोटे-खोटे आचरणोंको करते हुए मुझे अजंनीकुमार ने अपनाया और रामचन्द्रजीके पुनीत हाथोंसे मेरा सुधार करवाया। तुलसी गोसाई हुआ। अच्छी तरह पा रहा हूँ॥ 40॥ हूँ॥40॥
</poem>