{{KKCatAwadhiRachna}}
<poem>
'''सवैयारामगुलाम तुही हनुमानगोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो।पाल्यो हौ बाल ज्यों आखर दूपितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥ बाँहकी बेदन बाँहपगारपुकारत आरत आनँद भूलो।श्रीरघुबीर निवारिये पीररहौं दरबार परो लटि लूलो॥ 36॥ '''
भावार्थ - हे गोस्वामी '''रामगुलाम तुही हनुमान जी ! आप श्रेष्ठ स्वामी और ''''''गोसाँइ सुसाँइ सदा रामचन्द्रजीके सेवकोंके पक्षमें रहनेवाले हैं। आनन्द अनुकूलो।''''''पाल्यो हौ बाल ज्यों आखर दू''''''पितु मातु सों मंगल के मूल दोनो अक्षरों (राम-नाम) ने माता-पिता के समान मेरा पालन किया है। हे बाहुपगार (भुजाओंका आश्रय देनेवाले) बाहुकी पीड़से मैं सारा आनन्द भुलाकर दुखी होकर पुकार रहा हूँ। हे रघुकुलके वीर ! पीड़ाको दूर कीजिये जिससे दुर्बल और पंगु होकर भी आपके दरबारमें पड़ा रहूँ॥ 36॥ मोद समूलो॥''' '''बाँहकी बेदन बाँहपगार''''''पुकारत आरत आनँद भूलो।''''''श्रीरघुबीर निवारिये पीर''''''रहौं दरबार परो लटि लूलो॥36॥'''
घनाक्षरीकालकी करालता करम कठिनाई कीधौं,पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे।बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन,सोई बाँह गही जो गही समीरडावरे॥ लायो तरू तुलसी तिहारो सो निहारि बारि,सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे।भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान,जानियत सबहीकी रीति '''भावार्थ''' - हे गोस्वामी हनुमान जी ! आप श्रेष्ठ स्वामी और सदा रामचन्द्रजीके सेवकोंके पक्षमें रहनेवाले हैं। आनन्द मंगल के मूल दोनो अक्षरों (राम रावरे॥ 37॥ -नाम) ने माता-पिता के समान मेरा पालन किया है। हे बाहुपगार (भुजाओंका आश्रय देनेवाले) बाहुकी पीड़से मैं सारा आनन्द भुलाकर दुखी होकर पुकार रहा हूँ। हे रघुकुलके वीर ! पीड़ाको दूर कीजिये जिससे दुर्बल और पंगु होकर भी आपके दरबारमें पड़ा रहूँ॥36॥
भावार्थ - न जाने कालकी भयानकता है, कर्मोंकी कठिनता है, पापका प्रभाव है अथवा स्वाभाविक वातकी उन्मत्तता है। रात-दिन बुरी तरहकी पीड़ा हो रही हैं, जो सही नहीं जाती और उसी बाँहको पकड़े हुए है जिसको पवनकुमारने पकड़ा था। तुलसीरूपी वृक्ष आपका ही लगाया हुआ है। यह तीनों तापोंकी ज्वालासे झुलसकर मुरझा गया है इसकी ओर निहारकर कृपारूपी जलसे सींचिये। हे दयानिधान रामचन्द्रजी ! आप भूतोंकी, अपनी और बिरानेकी सबकी रीति जानते है॥ 37॥ '''घनाक्षरी'''
पायँपीर पेटपीर बाँहपीर मुहपीर'''कालकी करालता करम कठिनाई कीधौं,'''जरजर सकरल सरीर पीरमई है'''पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे।'''देव भूत पितर करम खल काल ग्रह'''बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन,'''मोहिपर दवरि दमानक सी दई है।'''सोई बाँह गही जो गही समीरडावरे॥''' हौं तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें'''लायो तरू तुलसी तिहारो सो निहारि बारि,'''ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है।'''सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे।'''कुंभजके किंकर बिल बूड़े गोखुरनि'''भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान,'''हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है॥ 38॥ '''जानियत सबहीकी रीति राम रावरे॥37॥'''
'''भावार्थ ''' - पाँवकी पीड़ान जाने कालकी भयानकता है, पेट की पीड़ाकर्मोंकी कठिनता है, बाहु की पीडा और मुखकी पापका प्रभाव है अथवा स्वाभाविक वातकी उन्मत्तता है। रात-दिन बुरी तरहकी पीड़ा-सारा शरीर पीड़ामय होकर जीर्ण-शीर्ण हो गया है। देवता, प्रेत, पितर, कर्मरही हैं, काल जो सही नहीं जाती और दुष्टग्रह -सब साथ ही दौरा करके मुझपर तोपोंकी बाड़-सी दे रहै हैं। बलि जाता हूँ, मैं तो लड़कपनसे उसी बाँहको पकड़े हुए है जिसको पवनकुमारने पकड़ा था। तुलसीरूपी वृक्ष आपका ही आपके हाथ बिना मोल बिका लगाया हुआ हूँ और अपने कपाल में रामनाम का आधार लिख लिया है। हाय राजा यह तीनों तापोंकी ज्वालासे झुलसकर मुरझा गया है इसकी ओर निहारकर कृपारूपी जलसे सींचिये। हे दयानिधान रामचन्द्रजी ! कहीं ऐसी दसा भी हुई है कि अगस्त्या मुनिका सेवक गायके खुरमें डूब गया हो॥ 38॥ आप भूतोंकी, अपनी और बिरानेकी सबकी रीति जानते है॥37॥
बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि'''पायँपीर पेटपीर बाँहपीर मुहपीर,'''मुँहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान है।'''जरजर सकरल सरीर पीरमई है'''रामनाम जपजाग कियो चहो सानुराग'''देव भूत पितर करम खल काल ग्रह,'''काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं। '''मोहिपर दवरि दमानक सी दई है।'''सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊर'''हौं तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें,'''जिनके समूह साके जागत जहान हैं।'''ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है।'''तुलसी सँभारि ताड़का-सँहारि भारी भट '''कुंभजके किंकर बिल बूड़े गोखुरनि,'''बेघे बरगदसे बनाइ बानवान हैं॥ 39॥ '''हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है॥38॥'''
'''भावार्थ ''' - बाहुकी पीड़ारूप नीच सुबाहु और देहकी अशक्ति-रूप मारीच राक्षस पाँवकी पीड़ा, पेट की पीड़ा, बाहु की पीडा और ताड़कारूपिणी मुखकी पीड़ा एवं अन्यान्य बुरे रोगरूप राक्षसोंसे मिले हुए हैं। मैं रामनामका जपरूपी यज्ञ प्रेमके साथ करना चाहता हूँ, पर कालदूत के समान ये भूत क्या मेरे काबूके हैं ? (कदापि नहीं) संसारमें जिनकी बड़ी नमावरी -सारा शरीर पीड़ामय होकर जीर्ण-शीर्ण हो रही हैगया है। देवता, वे (रा प्रेत, पितर, कर्म, काल और म) दोनों अक्षर स्मरण करनेपर मेरी सहायता करेगें। हे तुलसी ! तू ताड़काका वध करनेवाले भारी योद्धाका स्मरण करदुष्टग्रह -सब साथ ही दौरा करके मुझपर तोपोंकी बाड़-सी दे रहै हैं। बलि जाता हूँ, वह इन्हें मैं तो लड़कपनसे ही आपके हाथ बिना मोल बिका हुआ हूँ और अपने बाणका निशाना बनाकर बड़के फलके समान भेदन (स्थानच्युत) कर देंगे॥ 39॥ कपाल में रामनाम का आधार लिख लिया है। हाय राजा रामचन्द्रजी ! कहीं ऐसी दसा भी हुई है कि अगस्त्या मुनिका सेवक गायके खुरमें डूब गया हो॥38॥
बालपने सूघे मन राम सनमुख भयो'''बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि,'''रामनाम लेत भाँति खात टूकटाक हौं।'''मुँहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान है।'''पर्यो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय'''रामनाम जपजाग कियो चहो सानुराग,'''मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं॥ '''काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं।''' खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो'''सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊर,'''अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।'''जिनके समूह साके जागत जहान हैं।''''''तुलसी गोसाइँ भयो भोंड़े दिन भूलि गयो,सँभारि ताड़का-सँहारि भारी भट''' ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥ 40॥ '''बेघे बरगदसे बनाइ बानवान हैं॥39॥'''
'''भावार्थ ''' - बाहुकी पीड़ारूप नीच सुबाहु और देहकी अशक्ति-रूप मारीच राक्षस और ताड़कारूपिणी मुखकी पीड़ा एवं अन्यान्य बुरे रोगरूप राक्षसोंसे मिले हुए हैं। मैं रामनामका जपरूपी यज्ञ प्रेमके साथ करना चाहता हूँ, पर कालदूत के समान ये भूत क्या मेरे काबूके हैं ? (कदापि नहीं) संसारमें जिनकी बड़ी नमावरी हो रही है, वे (रा और म) दोनों अक्षर स्मरण करनेपर मेरी सहायता करेगें। हे तुलसी ! तू ताड़काका वध करनेवाले भारी योद्धाका स्मरण कर, वह इन्हें अपने बाणका निशाना बनाकर बड़के फलके समान भेदन (स्थानच्युत) कर देंगे॥39॥ '''बालपने सूघे मन राम सनमुख भयो,''''''रामनाम लेत भाँति खात टूकटाक हौं।''''''पर्यो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय,''''''मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं॥''' '''खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो,''''''अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।''''''तुलसी गोसाइँ भयो भोंड़े दिन भूलि गयो,''''''ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥40॥''' '''भावार्थ''' - मैं बाल्यावस्थासे ही सीधे मनसे श्रीरामचन्द्रजीके सम्मुख हुआ, मुँहसे रामनाम लेता टुकड़ा-टुकड़ी माँगकर खाता था (फिर युवावस्थामें) लोकरीतिमें पड़कर अज्ञानवश राजा रामचन्द्रजीके चरणोंकी पवित्र प्रीतिको चटपट(संसारमें) कूदकर तोड़ बैठा। उस समय खोटे-खोटे आचरणोंको करते हुए मुझे अजंनीकुमार ने अपनाया और रामचन्द्रजीके पुनीत हाथोंसे मेरा सुधार करवाया। तुलसी गोसाई हुआ। अच्छी तरह पा रहा हूँ॥ 40॥ हूँ॥40॥
</poem>