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Kavita Kosh से
इतने ग़रीब कि दो जून की रोटी मुहाल
एक-दो नहीं हज़ारों-हज़ार
पीछे छोड़ आए अशक्त कुटुंबकुटुम्ब
सीने उनके इस्पात के नहीं