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Kavita Kosh से
घबराहट थी कल की
मुझे लगा- लगीं सीढ़ियाँ हैं ज़्यादा
पर सीढ़ी थीं केवल तीन
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़
मैं चली थी धोखा देने
अपने दुखी, अशांत जीवन को
कहा-- तेरे साथ मरूँगी
वारा तुझ पर तन-मन को