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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकृष्ण खद्दर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>मैं खूब फुदकता रहता हूँ,
मैं लुकता छिपता रहता हूँ।
मैं आँख मिचौली खेलता हूँ,
मैं चूहा बिल्ली खेलता हूँ।
मैं चूँ चूँ म्याऊँ करता हूँ,
मैं मच्छी, मच्छी खेलता हूँ।
मैं कित्ता पानी पूछता हूँ,
मैं यह सब खेल खेलता हूँ।
-साभार: बालसखा, जुलाई 1940, 301
</poem>
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मैं लुकता छिपता रहता हूँ।
मैं आँख मिचौली खेलता हूँ,
मैं चूहा बिल्ली खेलता हूँ।
मैं चूँ चूँ म्याऊँ करता हूँ,
मैं मच्छी, मच्छी खेलता हूँ।
मैं कित्ता पानी पूछता हूँ,
मैं यह सब खेल खेलता हूँ।
-साभार: बालसखा, जुलाई 1940, 301
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