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तुक्का / बालकृष्ण गर्ग

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<poem>तड़बड़ बजता ताशा,
मीठा लगे बताशा।

मार करारा झापड़,
तोड़ा हमने पापड़।

फड़-फड़ उड़े दुपट्टा,
मारे चील झपट्टा।

छत पर बोले कौआ,
उड़े गगन कनकौआ।

भिन्नाता है मच्छर,
बोझा ढोता खच्चर।

सट-सट लगता कोड़ा,
सरपट दौड़े घोड़ा।

बैठ कार में कुत्ता,
पहुँच गया कलकत्ता।

मेरी प्यारी बिल्ली,
देख चुकी है दिल्ली।

मार तुकों में मुक्का,
बन जाएगा ‘तुक्का’!
</poem>
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