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{{KKRachna
|रचनाकार=श्यामसुंदर श्रीवास्तव 'कोमल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>मेरे द्वारे बहुत पुराना,
पेड़ खड़ा है पीपल का।
मैं तो बैठ पढ़ा करता हूँ
इसकी शीतल छाँव में,
इसके जैसा पेड़ नहीं है
दूजा कोई गाँच में।
बाकी सबके सब छोटे हैं
बरगद हो या कटहल का।
पंचों की चौपाल सदा ही
लगती है इसके नीचे,
बैठ यहीं पर करते संध्या
बाबा आँखें को मीचे।
दादी रोज चढ़ाती इस पर
भरा हुआ लोटा जल का।
साँझ-सकारे इसमें आकर
पंछी शोर मचाते हैं,
चिहँक-चिहँककर फुदक-फुदककर
मीठा गीत सुनाते हैं।
तुम भी इसे देखने आना
पेड़ बड़ा है पीपल का।
-साभार: नंदन, अप्रैल 1996,30
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>मेरे द्वारे बहुत पुराना,
पेड़ खड़ा है पीपल का।
मैं तो बैठ पढ़ा करता हूँ
इसकी शीतल छाँव में,
इसके जैसा पेड़ नहीं है
दूजा कोई गाँच में।
बाकी सबके सब छोटे हैं
बरगद हो या कटहल का।
पंचों की चौपाल सदा ही
लगती है इसके नीचे,
बैठ यहीं पर करते संध्या
बाबा आँखें को मीचे।
दादी रोज चढ़ाती इस पर
भरा हुआ लोटा जल का।
साँझ-सकारे इसमें आकर
पंछी शोर मचाते हैं,
चिहँक-चिहँककर फुदक-फुदककर
मीठा गीत सुनाते हैं।
तुम भी इसे देखने आना
पेड़ बड़ा है पीपल का।
-साभार: नंदन, अप्रैल 1996,30
</poem>