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|रचनाकार=श्रीप्रसाद
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<poem>खाने को दो खीर कदम
खाने को दो मालपुआ,
खाने को देना पेड़े
माँग रही हैं बड़ी बुआ!
बड़ी बुआ ने खाया सब
बड़े पलँग पर बैठीं अब।
अब क्या लेंगी बड़ी बुआ,
शायद माँगेंगी हलुआ।
</poem>
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खाने को दो मालपुआ,
खाने को देना पेड़े
माँग रही हैं बड़ी बुआ!
बड़ी बुआ ने खाया सब
बड़े पलँग पर बैठीं अब।
अब क्या लेंगी बड़ी बुआ,
शायद माँगेंगी हलुआ।
</poem>