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{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीप्रसाद
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>सारे चूहों ने मिल-जुलकर
एक बनाया दही-बड़ा,
सत्तर किलो दही मँगाया
फिर छुड़वाया दही-बड़ा!
दिन भर रहा दही के अंदर
बहुत बड़ा वह दही-बड़ा,
फिर चूहों ने उसे उठाकर
दरवाजे से किया खड़ा।
रात और दिन दही बड़ा ही
अब सब चूहे खाते हैं,
मौज मनाते गाना गाते
कहीं न घर से जाते हैं!
</poem>
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<poem>सारे चूहों ने मिल-जुलकर
एक बनाया दही-बड़ा,
सत्तर किलो दही मँगाया
फिर छुड़वाया दही-बड़ा!
दिन भर रहा दही के अंदर
बहुत बड़ा वह दही-बड़ा,
फिर चूहों ने उसे उठाकर
दरवाजे से किया खड़ा।
रात और दिन दही बड़ा ही
अब सब चूहे खाते हैं,
मौज मनाते गाना गाते
कहीं न घर से जाते हैं!
</poem>