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<poem>दिल्ली के रहने वाले
अजब भुलक्कड़ राम जी,
खाना खाना भूल गए
करते हैं आराम जी!

जब उनको फिर भूख लगी
हलवे का लें नाम जी,
पूछा इक हलवाई से-
क्या है इसका दाम जी?
हलवाई ने टोक दिया
लेकन उनक नाम जी,
बिन पैसे हलवा कैसे
वाह, भुलक्कड़ राम जी!

दूध पेस्ट रगड़ा माथे
समझा उसको बाम जी,
अंट-शंट कामों को यूँ
करें भुलक्कड़ राम जी!
मामा आए मिलने को
पूछा क्या है काम जी,
कौन कहाँ के हो जी तुम,
कर लो ‘राम-राम’ जी!

रिश्ते को भी भूल गए
बड़े भुलक्कड़ राम जी,
‘भूल भुलक्कड़’ का सबसे
पाते यह इनाम जी।

-साभार: नंदन, दिसंबर, 1997, 40
</poem>
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