भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलिमा सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीलिमा सिन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>आसमान एक धुनिया,
बादल धुनक-धुनक-धुन।
बादल उड़ते ऐसे,
जैसे मेह बरसता,
या कि मन-उपवन में-
जैसे उड़े सरसता।
नाचा करती नन्हीं मुनिया,
ता-थेई, थेई-थेई-धुन!
बादल के नन्हें फाए-
खिल-खिल-खिल हँसते,
आसमान की नीली-
दाढ़ी में जा फँसते।
हाल देख यह हँसे चाँदनी,
खुनक-खुनक-खुन!
बादल धुन-धुन सुंदर-सी
एक सेज बनाता,
उस पर किरणों का-
चमकीला खोल चढ़ाता।
चंदा मामा मगन हवा की-
लोरी सुन-सुन!
-साभार: नंदन, मार्च 1999, 20
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=नीलिमा सिन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>आसमान एक धुनिया,
बादल धुनक-धुनक-धुन।
बादल उड़ते ऐसे,
जैसे मेह बरसता,
या कि मन-उपवन में-
जैसे उड़े सरसता।
नाचा करती नन्हीं मुनिया,
ता-थेई, थेई-थेई-धुन!
बादल के नन्हें फाए-
खिल-खिल-खिल हँसते,
आसमान की नीली-
दाढ़ी में जा फँसते।
हाल देख यह हँसे चाँदनी,
खुनक-खुनक-खुन!
बादल धुन-धुन सुंदर-सी
एक सेज बनाता,
उस पर किरणों का-
चमकीला खोल चढ़ाता।
चंदा मामा मगन हवा की-
लोरी सुन-सुन!
-साभार: नंदन, मार्च 1999, 20
</poem>