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धुनक-धुनक-धुन / नीलिमा सिन्हा

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<poem>आसमान एक धुनिया,
बादल धुनक-धुनक-धुन।

बादल उड़ते ऐसे,
जैसे मेह बरसता,
या कि मन-उपवन में-
जैसे उड़े सरसता।

नाचा करती नन्हीं मुनिया,
ता-थेई, थेई-थेई-धुन!

बादल के नन्हें फाए-
खिल-खिल-खिल हँसते,
आसमान की नीली-
दाढ़ी में जा फँसते।

हाल देख यह हँसे चाँदनी,
खुनक-खुनक-खुन!

बादल धुन-धुन सुंदर-सी
एक सेज बनाता,
उस पर किरणों का-
चमकीला खोल चढ़ाता।

चंदा मामा मगन हवा की-
लोरी सुन-सुन!

-साभार: नंदन, मार्च 1999, 20
</poem>
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