भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिरखा / संजय पुरोहित

1,332 bytes added, 10:39, 28 नवम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संजय पुरोहित
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>आभै रै आंगणैं
पळकतो चांदो
रंगोळी मांडता तारा
लुकमीचणी खेलती बीजळी
बायरियो खिंदांवतो
छांट्यां रो कागद
उडीकतो बीज मुळक्यो
धोरी हरख्यो
रेत में न्हावंती चिड़कली
दीन्हौा बिरखा नै सामेळो
बादळ कड़कड़ाया-गाज्या
धाप‘र बरस्या
मुरधर पचायली छांट्यां
काढ्या बिरवा
हुयौ धान खेतां में
बसगी मौज
गांव घाली घूमर
घर उमाव में नाच्या।

मुरधर में
जूण री आस बधगी
जमारै री आस पळगी
रूठो भलै राज मोकळो
कदै ई ना रूठै राम
क्यूं फ़ेर चिड़ी
दाणा नै तरसै
जे इन्धर धाप-धाप
लगोलग बरसै !
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,482
edits