भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कमाल की औरतें ३४ / शैलजा पाठक

1,145 bytes added, 10:11, 20 दिसम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>हर चिड़िय़ां लड़ाकू नहीं होती
और सारी चिड़िय़ां सुन्दर भी नहीं
सभी उड़ भी नहीं पाती आसमान तक

सबके चोंच गुलाबी भी नहीं होते
सबके गले से सुरीली आवाज़ भी नहीं निकालती

सभी के ƒघोंसलों में परिवार की ऊर्जा भी नहीं भरी होती
कुछ चिडिय़ां अकेले भी नापती हैं आकाश
पर चिड़िय़ां चाहे जैसी भी हों
उनके पंख सुनहरे होते हैं
और हम हर सुनहरी चीज़ का शिकार करते हैं।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits