भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatNazm}}
<poem>
है तू सबका ख़ुदा खु़दा सब तुझ पे फ़िदा ।फ़िदा।अल्लाहो ग़नी<ref>निस्पृहनिःस्पृह, बेनियाज</ref>, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।हे कृष्ण कन्हैया, नन्द नंद लला !अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।इसरारे<ref>मर्म-भेद</ref> हक़ीक़त यों खोले।तोहीद<ref>अद्वैत, ईश्वर को एक मानना</ref> के वह मोती रोले।सब कहने लगे ऐ सल्ले अला।अल्लाहो ग़नी , अल्लाहो ग़नी।
इसरारेसरसब्ज हुए वीरानए दिल।इस में हुआ जब तू दाखिल।गुलज़ार<ref>मर्म, भेदबाग</ref> हक़ीक़त यों खोले ।तोहीदखिला सहरा-सहरा<ref>अद्वैत, ईश्वर को एक माननाजंगल</ref> के वह मोती रोले ।सब कहने लगे ऐ सल्ले अला ।अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
सरसब्ज़ हुए वीरानए दिल ।फिर तुझसे तजल्ली<ref>आभा, नूर</ref> ज़ार<ref>भरपूर, रक्षक</ref> हुई।इस में हुआ जब तू दाखिल ।दुनिया कहती तीरो तार हुई।गुलज़ारऐ जल्वा फ़रोजे<ref>बाग़रोशन करने वाले</ref> खिला सहराबज़्मे-सहराहुदा<ref>जंगल-जंगलसत्यता की महफिल</ref> ।ऐ सल्ले अला, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
फिर तुझसे तजल्ली<ref>आभा, नूर</ref> ज़ार<ref>भरपूर, रक्षक</ref> हुई ।मुट्ठी भर चावल के बदले।दुनिया कहती तीरो तार हुई ।दुख दर्द सुदामा के दूर किए।ऐ जल्वा फ़रोज़े<ref>रोशन करने वाले</ref> बज़्मे-हुदा<ref>सत्यता की महफ़िल</ref> ।पल भर में बना क़तरा दरिया।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
मुट्ठी भर चावल के बदले ।जब तुझसे मिला ख़ुद को भ्ूला।दुख दर्द सुदामा के दूर किए ।हैरान हूं मैं इंसा कि खु़दा।पल भर में बना क़तरा दरिया ।मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
जब तुझसे मिला ख़ुद को भूला ।खुर्शीद<ref>सूरज</ref> में जल्वा चांद में भी।हैरान हूँ मैं इंसा कि ख़ुदा ।हर गुल में तेरे रुख़सार<ref>कपोल</ref> की बू।मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ ।घूंघट जो खुला सखियों ने कहा।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
ख़ुर्शीददिलदार ग्वालों, बालों का।और सारे दुनियांदारों का।सूरत में नबी<ref>सूरजईश-दूत, पैगम्बर</ref> में जल्वा चाँद में भी ।हर गुल में तेरे रुख़सारसीरत<ref>कपोलस्वभाव, गालप्रकृति</ref> की बू ।घूँघट जो खुला सखियों ने कहा ।में खु़दा।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
दिलदार ग्वालों, बालों का ।और सारे दुनियादारों का ।सूरत में नबीइस हुस्ने अमल<ref>ईशशुभ कार्य</ref> के सालिक<ref>गृहस्थ-दूत, पैगम्बरसाधक</ref> सीरतने।इस दस्तो जबलए<ref>जंगल और पहाड़</ref> के मालिक ने।कोहसार<ref>स्वभाव, प्रकृतिपर्वत</ref> में ख़ुदा ।लिया उंगली पे उठा।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
इस हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> के सालिक<ref>गृहस्थ, साधक</ref> ने ।मन मोहनी सूरत वाला था।इस दस्तो जबलए<ref>जंगल और पहाड़</ref> के मालिक ने ।न गोरा था न काला था।कोहसार<ref>पर्वत</ref> लिया उँगली पे उठा ।जिस रंग में चाहा देख लिया।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
मन मोहिनी सूरत वाला था ।तालिब<ref>याचक, इच्छुक</ref> है तेरी रहमत का।न गोरा था न काला था ।बन्दए नाचीज़<ref>तुच्छ सेवक</ref> नज़ीर तेरा।जिस रंग में चाहा देख लिया ।तू बहरे करम<ref>दया का सागर</ref> है नंद लला।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी । तालिब<ref>याचक, इच्छुक</ref> है तेरी रहमत का ।बन्दए नाचीज़<ref>तुच्छ सेवक</ref> नज़ीर तेरा ।तू बहरे करम<ref>दया का सागर</ref> है नंद लला ।ऐ सल्ले अला,अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।ग़नी।
</poem>
{{KKMeaning}}