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छात-एक / विनोद स्वामी

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|रचनाकार=विनोद स्वामी
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
छात तो छात है
ऊपर चढै तो नीचै पड़ण रो डर
अर
नीचै बैठै तो ऊपर पड़ण रो।

फेर ई म्हे
ऊपर ई चढां
अर
नीचै ई बैठां।

ऊपर चढां जद
एक पग मंडेरी माथै मेलणो
कोनी भूलां
अर नीचै बैठां जद
कद भूलां
करणी
करड़ी छाती।
</poem>
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