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|रचनाकार=हरि शंकर आचार्य
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
}}
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<poem>
ऐ मुगत है
आं नै कोनी चाहीजै
किणी पुळ या उडणखटोळै रो
सायरो
आंनैं कोनीं बांध सकां
सांप्रदायिकता जात-पांत
अर मिनख रै बणायोड़ै
दूजा जाळां मांय।
</poem>
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ऐ मुगत है
आं नै कोनी चाहीजै
किणी पुळ या उडणखटोळै रो
सायरो
आंनैं कोनीं बांध सकां
सांप्रदायिकता जात-पांत
अर मिनख रै बणायोड़ै
दूजा जाळां मांय।
</poem>