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{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=युगमंगलस्तोत्र / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
छहरैं मुख पै घनश्याम से केश इतै सिर मोर पखा फहरैं।
इत गोल कपोलन पै अति लोल अमोल लली मुक्ता थहरैं॥
इहि भाँति सो बद्रीनरायन जू दोऊ देखि रहे जमुना लहरैं।
निति ऐसे सनेह सों राधिका श्याम हमारे हिये मैं सदा विहरैं॥
</poem>
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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=युगमंगलस्तोत्र / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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छहरैं मुख पै घनश्याम से केश इतै सिर मोर पखा फहरैं।
इत गोल कपोलन पै अति लोल अमोल लली मुक्ता थहरैं॥
इहि भाँति सो बद्रीनरायन जू दोऊ देखि रहे जमुना लहरैं।
निति ऐसे सनेह सों राधिका श्याम हमारे हिये मैं सदा विहरैं॥
</poem>