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Kavita Kosh से
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ही मैं धारे स्याम रंग ही को हरसावै जग,
::भरै भक्ति सर तोपि तोषि कै चतुर चातकन।
भूमि हरिआवै कविता की कवि दोष ताप,
::हरि नागरी की चाह बाढ़ै जासो छन छन॥