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प्रार्थना - 1 / प्रेमघन

No change in size, 12:43, 30 जनवरी 2016
<poem>
ही मैं धारे स्याम रंग ही को हरसावै जग,
::भरै भक्ति सर तोपि तोषि कै चतुर चातकन।
भूमि हरिआवै कविता की कवि दोष ताप,
::हरि नागरी की चाह बाढ़ै जासो छन छन॥
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