भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पावस - 3 / प्रेमघन

784 bytes added, 07:10, 3 फ़रवरी 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
चंचला चौंकि चकी चमकै, नभ वारि भरे बदरा लगे धावन।
कुंजन चातक मंजु मयूर, अलाप लगे ललचाय मचावन॥
छाय रह्यो घनप्रेम सबै हिय, मानिनी लाग्यो मनोज मनावन।
साजन लागीं सिंगार सजोगिन, आवत ही मनभावन सावन॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits