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|संग्रह=खिड़कियाँ / अशोक चक्रधर
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माना, तू अजनबी है
और मैं भी, अजनबी हूँ
डरने की बात क्या है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
तू सामने है मेरे<br>मैं सामने हूं तेरे<br>युं ही सामना हुआ है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे<br><br>दे।
मैं भी न मिलूं शायद<br>तू भी न मिले शायद<br>इतनी बड़ी दुनिया है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे।<br/poem>