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पावस - 7 / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
उड़ैं बक औलि अनेकन व्योम,
::विराजत सैन समान महान।
भरे घन प्रेम रटैं कवि चातक,
::कूकि मयूर करै रस गान॥
छनै छनही छन जोन्ह छुवै,
::छिन छोर निसान छटा छहरान।
चलाहक पै जनु आवत आज,
::है पावस भूपति बैठि विमान॥
</poem>
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