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पावस - 8 / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
नभ घूमि रही घनघोर घटा,
::चहुँ ओरन सों चपला चमकान।
चलै सुभ सावन सीरी समीर,
::सुजीगन के गन को दरसान॥
चमू चँहकारत चातक चारु,
::कलाप कलापी लगे कहरान।
मनोभव भूपति की वर्षा मिस,
:फेरत आज दोहाई जहान॥
</poem>
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