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पावस - 10 / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
नाच रहे मन मोद भरे,
::कल कुंज करैं किलकार कलापी।
गाय रहे मधुरे स्वर चातक,
::मारन मन्त्र मनोज के जापी॥
झिल्लियाँ यों झनकारि कहैं,
::मन मैं घन प्रेम पसारि प्रतापी।
आज गयो विरही जन के बध,
::काज अरे यह पावस पापी॥
</poem>
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