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पावस - 11 / प्रेमघन

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|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
चंचला चोखी कृपान बनी,
::अवली बगुलान की सैन रही जुर।
सारँग सारँग है सुर नायक,
::जय धुनि दादुर मोरन को सुर॥
वे घन प्रेम पगीं विरहीन पैं,
::व्याज लिये बरसा अति आतुर।
आवत धावत वीरता वारि,
::भरे बदरा ये अनंग बहादुर॥
</poem>
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