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|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
कहि रहल अछि मोन हम्मर राति जएते बीति।
प्रत्येक भोरक कोड़मे,
कोनो-ने-कोनो काज
प्रत्येक भोरक ठोरपर,
कोनो-ने-कोनो नाम।

काजकेर एहि बोझ तर
आ नामकेर एहि खोजमे,
जिनगिये जाएत बीति !

बीतैत पलकेर सोच
कहियो भेल अछि की ?
काजक ई लागल ढेर
हमरार रोच कहियो भेल अछि की ?
आबओ कोनो बिहाड़ि जिननी हमर जाएत जीति !
</poem>
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