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<poem>
दीवार चमकती महलों की,
मुख दिखलाई देता था,
धन्य द्वारिका देखा जिसने,
अदभुत आनन्द लेता था |
सुन्दर सुन्दर कई बाग वहाँ,
और नगर चहुँ ओर रहे,
उनमें रंग बिरंगे खिलते,
फूल फूल चित चोर रहे |
तरह तरह के फल फूलों से,
बाग बगीचे सुन्दर थे,
कुण्डों में निर्मल नीर भरा,
कई एक वहाँ पर मंदिर थे |
तड़ाग बावली कुण्डों में,
था मोती समान स्वच्छ साफ मधुर शीतल पानी,
आते देव सकल नहाने,
वहाँ और कई ज्ञानी ध्यानी ।आस पास वारिद की लहरें, पानी की लहर निराली थी,हरे भरे सब वृक्ष खड़े, वहाँ चहुँ ओर हरियाली थी |कहीं नहर नदी तालाब भरे, कहीं कहीं पर झरना झरते थे,कोकिल शुक शिखी सारिका, कहीं मीठे बैन उचरते थे |कहीं बाग भरा फूलों से था, सरसब्ज छटा दिखलाती थी, कहीं अमोलक हंस हंसिनी, कोयल गाना गाती थी |
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