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कुछ लोग
 
युद्ध जीत कर लौटते हैं
 
कुछ वहीं मारे जाते हैं
 
जिनके लौटते हैं शव
 
कुछ ऎसे होते हैं
 
जो पीठ दिखाकर लौटते हैं:
 
किसी संग्राम से मैं लौट रहा हूँ।
 
मैं लौट रहा हूँ
 
हिंसा से विचलित होकर नहीं
 
मृत्यु के भय से नहीं।
 
अपने ही प्रिय युद्ध-क्षेत्र से
 
अपने न पहचाने जाने की
 
नि:स्वार्थ अनन्त इच्छाओं के साथ
 
मैं लौट रहा हूँ
 
दोनों हाथों से चेहरे को छिपाए
 
पिछले कर्मों पर
 
लीपा-पोती करता हुआ।
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